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नदियों का सीना छलनी होने के बाद जागा शासन-प्रशासन, रेत माफियाओं के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्यवाही… रेत की कालाबाजारी शुरू, आशियाना बनाने का आम आदमी का सपना टूटा, वाहन मालिकों की रोजी रोटी पर पड़ा असर…

नदियों का सीना छलनी होने के बाद जागा शासन-प्रशासन, रेत माफियाओं के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्यवाही…

रेत की कालाबाजारी शुरू, आशियाना बनाने का आम आदमी का सपना टूटा, वाहन मालिकों की रोजी रोटी पर पड़ा असर…

कमलेश शर्मा-द-डॉन-न्यूज

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा रेत माफियाओं के खिलाफ सख्ती बरतने के बयान के बाद से सुदूर वनांचल क्षेत्र जनकपुर कोटाडोल सहित पूरे जिले में प्रशासन व खनिज अमले द्वारा पिछले कई दिनों में रेत के अवैध उत्खनन व परिवहन में संलिप्त दर्जनों गाड़ियों को धर दबोचा गया है। और अभी भी ताबड़तोड़ कार्यवाही जारी है। जो कि एक सराहनीय कदम है लेकिन इसके भी साइड इफेक्ट दिखने शुरू हो गए हैं। क्योंकि अपने आशियाने का सपना देखने बनाने वाली गरीब जनता व वाहन मालिकों की कमर अभी से टूटने लगी है। रेत के दाम बढ़ गए हैं व कालाबाजारी शुरू हो गयी है। जिले में नदी नालों का सीना चीरने वाली मशीनों को खामोश कर दिया गया है। लेकिन रेत माफियाओं के खिलाफ अभी तक कोई ठोस कार्यवाही नही हो सकी है। वनांचल क्षेत्रों में घूम घूम कर खनिज विभाग वाले रेत की गाड़ियों को पकड़ रहे हैं। और इस कार्यवाही के बाद अब आम जनता के लिए प्रति हाइवा रेत तीन से चार हजार रुपये मंहगी कर दी गई है। लेकिन ये तमाम कार्यवाही ये सोचने पर मजबूर करती है कि क्या नदी का सीना चीरने की शुरुआत अभी कुछ ही दिनों पहले की गई ? क्या ये बेख़ौफ़ तस्करी वाली गाड़ियां पिछले कुछ दिनों से ही चल रही थीं ? कतई नहीं। पूरे प्रदेश भर के जिला कलेक्टरों व सत्ता के नुमाइंदों को इन अवैध कार्यों की जानकारी थी। और हर जिले के नेता व खनिज अधिकारी रेत माफियाओं से मुंहमांगी रकम लेकर विभाग के संरक्षण में ये काम करवा रहे थे। विपक्ष में रहते रेत माफियायों के खिलाफ आये दिन धरना प्रदर्शन करने वाले नेता भी गांधी छाप नोटों के कारण गांधीवादी तरीक़े से मौन हो गए थे। इसीलिए अब तक इन पर कार्यवाही नहीं की जा रही थी। ग्रामीण के लगातार आंदोलनों के बाद भी कुम्भकर्णी नींद में सोने वाला प्रशासन मुख्यमंत्री के फरमान के बाद पूरे प्रदेश में  पिछले दो-तीन दिनों में अचानक से बहुत ईमानदार और कठोर सा दिखने लगा हैं। लेकिन पिछले दो दिनों से पहले क्यों इन्होने अपनी आँखें मूँद रखी थी? वैसे बात तो यह भी उठनी चाहिए कि मुख्यमंत्री , प्रभारी मंत्री सहित अन्य मंत्रियों को इस बात की जानकारी क्या पिछले दो दिनों बाद ही लगी ? यदि इसका जवाब हाँ है तो सरकार का सूचना तंत्र ध्वस्त है और यदि इसका जवाब ना है तो जाहिर सी बात है कि विभागों द्वारा लिया जा रहा पैसा राजधानी तक  जरूर पहुंचता रहा होगा। कहा तो यह भी जाता है कि रेत माफियायों के तार प्रदेश की राजधानी से लेकर दिल्ली और उत्तरप्रदेश तक जुड़े हुए हैं। अब अचानक से कार्यवाही क्यों और कब तक ये समय के गर्भ में है। बहरहाल आम जनता फिर से एक बार खुद का घर बनाने के सपने को त्याग दे क्यूंकि इस महंगी दर पर रेत खरीदना शायद उनके लिए संभव ना होगा। रेत का अवैध उत्खनन रोका तो सरकार के सामने रेत की कालाबाजारी एक बड़ी चुनौती बन कर उभरी है। अवैध रेत उत्खनन व परिवहन रोकने छतीसगढ़ की भूपेश सरकार की सख्ती के बाद उसका साइड इफेक्ट दो- तीन दिनों में ही सामने आ गया है। रेत की अभूतपूर्व कालाबाज़ारी अब शुरू हो गई है। सरकार की सख़्ती के बाद अब वक्त ही बताएगा सरकार अब इस नई और विकट चुनौती से कैसे निपटती है। या जनता के उसके हाल पर छोड़ देती है। जिन्होंने एक अदद मकान का सपना देखा था, उनके सपने महंगी रेत के कारण चूर चूर हो रहे हैं। बैंकों से लोन लेकर वाहनों का किश्त चुकाने वाले वाहन मालिक भी बेरोजगारी के दौर में पहुंच गये हैं। खबरों के मुताबिक 500 रुपए ट्रैक्टर ट्राली और 4 हजार रुपये प्रति हाइवा अधिक का दाम जनता को देना पड़ा रहा है। सरकार को जनता के सिर पर आई इस नई मुसीबत से निपटने रेत के मूल्य को कम कराना होगा याने कालाबाज़ारी का खात्मा अथवा निजी क्षेत्र के सारे रेतघाट ठेके रदद् कर फिर रेत का काम काज सरकार को अपने हाथ लेना होगा। जिससे कि उचित व सही मूल्य पर जरूरतमंदों को रेत मिल सके। भूपेश  सरकार ने तीन साल बाद अचानक से तेवर दिखाते हुए प्रदेश के  कलेक्टर और एसपी को चेताया कि रेत का अवैध उत्खनन व परिवहन तत्काल रोकें अन्यथा कार्यवाही होगी। इस चेतावनी के बाद पूरे प्रदेश में सरकारी नौकरों ने ताबड़तोड़ छापे मार दो दिन में दो सौ से अधिक वाहन जब्त कर लिए। क्या रेत के अवैध उत्खनन की जानकारी मुख्यमंत्री को तो थी पर जिले के एसपी, कलेक्टर और संबंधित विभाग के सरकारी नौकरों को नही थी? अगर ऐसा है तो ऐसे नौकरों को तत्काल बर्खास्त कर देना चाहिए। यदि जानकारी थी और अवैध उत्खनन की और जानबुुझकर किसी लालच के कारण अनदेखी की जा रही थी, तो न केवल इन्हें बर्खास्त करना चाहिए  अपितु इनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई भी करनी चाहिए। इसके साथ ही लाख टके का एक सवाल यह भी है कि मुख्यमंत्री  भूपेश बघेल जो कि इन दिनों उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में व्यस्त हैं अचानक  कैसे जाग उठे? क्या यह छवि चमकाने की कवायद है या और कुछ गहरा मामला है? बहरहाल प्रदेश सरकार का यह सराहनीय कदम है, लेकिन इसके साथ ही आमजनता के हितों के सरंक्षण व रेत की कालाबाजारी, बढ़ते दाम पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कदम भी उठाने होंगे।

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