कोरियाहमर जिला

समृद्धशाली परंपराओं एवं जीवनशैली को संरक्षित करने के लिए अपने संघर्ष और सहनशीलता की वजह से नए आयाम गढ़ रहा आदिवासी समाज : गुलाब कमरो…

समृद्धशाली परंपराओं एवं जीवनशैली को संरक्षित करने के लिए अपने संघर्ष और सहनशीलता की वजह से नए आयाम गढ़ रहा आदिवासी समाज : गुलाब कमरो…

कमलेश शर्मा-कोरिया

आज 21 वीं सदी का दौर है, हर ओर विकास की बात की जा रही है. मानव सभ्यताओं को जीवित रखने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं. ऐसे में सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण की सूई हमारे आदिवासी समाज की ओर घूम ही जाती है. उसकी वजह भी है क्योंकि हर आदि परंपराओं का सृजन और उस संस्कृति को जीवित रखने में इस समुदाय का संपूर्ण विश्व सदैव ऋणी रहेगा. उक्त बातें सरगुजा विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष व भरतपुर सोनहत विधायक राज्य मंत्री गुलाब कमरों ने विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर रानी दुर्गावती भवन डोमनापारा में आयोजित विश्व आदिवासी समारोह कार्यक्रम में कहीं !

राज्यमंत्री गुलाब कमरों ने सर्व आदिवासी समाज के महापुरुषों को पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी ! इस दौरान श्री कमरों ने अपने उद्बोधन में कहा कि कई सदियों तक बुनियादी सुविधाओं के घोर अभाव के बावजूद प्रकृति की इबादत करना और उसके संरक्षण के विभिन्न आयामों को गढ़ने में आदिवासी समुदाय की भूमिका विश्व में अनुकरणीय रही है. भौतिकतावादी युग में संस्कृति और अनूठी परंपराओं के साथ सामंजस्य बैठा पाना आज भी एक चुनौती है. खासकर उदारीकरण के दौर में जिन क्षेत्रों में यह समुदाय निवास करता है, उन क्षेत्रों के खनिज संपदा को सदियों से जिन्होंने संरक्षित रखा है, वहां अगर कुछ नापाक मंसूबे संस्कृति का छिद्रान्वेषण करेंगे तो टीस तो उठेगी ही. इसके बाद भी आज यह समुदाय अपनी समृद्धशाली परंपराओं एवं जीवनशैली को संरक्षित करने के लिए अपने संघर्ष और सहनशीलता की वजह से नये आयाम गढ़ रहा है, यह हमारे लिए हर्ष की बात है! हमारे आदिवासी समाज की कृतियां और गाथाएं विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर बतायी जानेवाली सुक्तियां नहीं हैं, बल्कि पूरे विश्व समुदाय के लिए ऐसी प्रेरक घोषणाएं हैं, जिनके माध्यम से हर दिन नये जीवन का प्रारंभ कर सकते हैं. हमारे राज्य छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदाय के संघर्ष की स्वर्णिम गाथाएं स्वतंत्रता आंदोलन की गवाह रही हैं. जमाखोरी, सूदखोरी और महाजनी प्रथा के खिलाफ संताल की लड़ाई को भला कौन भूल सकता है. उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय एक ऐसा समूह है, जो अपनी परंपरा-संस्कृति को अपने सीने से लगा कर सदैव चलता रहा है. हड़प्पा संस्कृति और मोहनजोदड़ो की खुदाई में पाये गये बर्तन में आज भी आदिवासी समुदाय के लोग खाना खाते हैं. पर आज आदिवासी समुदायों के गिरते जीवन स्तर पर भी हमें चिंतन करने की आवश्यकता है. देश में 1951 ईस्वी तक लगभग 30 से 35 प्रतिशत आदिवासी हुआ करते थे, आज आदिवासियों की संख्या मात्र 26 प्रतिशत रह गयी है.यह अपने आप में एक बहुत ही गंभीर विषय है कि आखिर आदिवासी समुदाय के लोगों की संख्या कैसे घटी? इस पर शोध और चिंतन नितांत आवश्यक है. आज पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग को लेकर चिंतित है. प्रकृति के बदलाव के वजह से जो परिस्थिति उत्पन्न हुई है यह काफी चिंतनीय है. प्राकृतिक संतुलन को बनाये रखने में आदिवासी समुदाय की भूमिका सबसे अहम रही है और आगे भी रहेगी. ग्लोबल वार्मिंग जैसी चीजों से बचाव आदिवासी समाज से बेहतर और कोई नहीं कर सकता है. राज्यमंत्री गुलाब कमरो ने कहा कि मैं भी इसी आदिवासी समाज से आता हूं मेरे मन में भी बहुत संवेदनाएं हैं.आदिवासी परंपरा संस्कृति को अच्छा रखने के लिए सरकार भी इस समुदाय के साथ निरंतर कंधे से कंधा मिलाकर चलेगी. शायद यही वजह है कि सरकार ने अपने पहले कैबिनेट में ही अपना मंशा जाहिर कर दी थी. आदिवासियों को रोजगार सृजन जैसे कृषि, पशुपालन से जोड़ने पर सरकार का ध्यान है. वहीं वन अधिकार कानून के तहत वनों में रहनेवाले लोगों को न केवल अधिकार दिया जा रहा है बल्कि आजीविका के लिए वनोत्पाद में भी उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है. इसका फायदा आदिवासी और मूलवासी दोनों को होगा. आदिवासी हितों की कोरी बकवास करनेवालों के लिए भी हम प्रेरणादायक है, जिनकी भ्रामक बातों के बावजूद हमारा अपनी संस्कृति पर भरोसा कायम है. आदिवासी समाज उनके लिए एक मजबूत स्तंभ की तरह हैं, एक प्रेरणा स्रोत हैं जो विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत खो देते हैं. उत्कृष्ट जीवनशैली, सादगीभरा जीवन और प्रकृति से स्नेह से जिनकी पहचान होती है, हम उस जलधारा के संवाहक हैं जो तमाम झंझावातों के बाद भी अविरल, निश्चल होकर जंगल की पगडंडियों से बह रही है. आदिवासी समुदाय के संघर्ष की गाथाओं को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी 1993 में महसूस किया जिसे यू. एन. डब्ल्यू. जी. ई. पी. के 11 वें अधिवेशन में आदिवासी अधिकार घोषणा पत्र के रूप में मान्यता दी गयी. इसके उपरांत 1994 को यूएनओ ने जेनेवा महासभा में सर्वसम्मति से नौ अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस ( इंटरनेशनल डे ऑफ द वर्ल्ड इंडिजिनस पीपुल) मनाये जाने का निर्णय लिया ! छत्तीसगढ़ सरकार ने भी विश्व आदिवासी दिवस पर एक दिन अवकाश की व्यवस्था की है ! इस अवसर पर पूर्व विधायक श्रीमती चंपा देवी पावले, जिला पंचायत सदस्य श्रीमती उषा सिंह, जनपद अध्यक्ष डॉ विनय शंकर सिंह, जनपद सदस्य रोशन सिंह, शरण सिंह, परमेश्वर सिंह, श्रीमती ललिता सिंह, राम नरेश पटेल, भागीरथी सिंह, अमर सिंह, महेंद्र सिंह , कोशिल्या सिंह, कमलेश्वरी सिंह, बब्बू सिंह, अमोल सिंह, प्राण सिंह, हंसराज सिंह, संतोष सिंह, सहित समाज के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

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